जीवन का मकसद क्या है ? Waht is purpose of life?

जीवन का मकसद क्या है ? Waht is purpose of life?

आजकी भाग दौड़ की जिंदगी में शायद ही कोई इस बारे में सोचता है की इसके जीवन का मकसद क्या है ?आखिर क्यों वो संसार में आया है? हर मनुष्य की अंतरात्मा उसे हमेशा इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है लकिन मनुष्य अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुनी करके इन सवालों को नजरअंदाज कर देता है और अपने जीवन की अभिलाषाओं को पूरा करने में और भोग विलास की जिंदगी बिताने में अपनी सारी उम्र बिता देता है।आइए विस्तार से जानने की कोशिश करतें है की कैसे हम अपनी अन्तरात्मा को नजर अंदाज करते है। 




अपनी अन्तरात्मा की आवाज को पहचानें 

जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसकी बौद्धिक स्तर बहुत कम होती है उसे इस संसार के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं होता है जैसे जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है उसकी बौद्धिक स्तर भी विकसित होने लगती है और यही वो समय होता है जब एक बच्चे के मन में तरह तरह के प्रश्न उठने लगता है जैसे इस संसार को किसने बनाया उसे किसने बनाया ?उसके इस दुनिया में आने का मकसद वगैरह वगैरह , यही उसकी अंतरात्मा की आवाज होती है जो उसे इन सरे सवालो के जवाब ढूंढने के लये उसे प्रेरित करती है परन्तु आज के आधुनिक युग में तरह तरह के मनोरंजन के साधन उपलब्ध है जिसके द्वारा बच्चे अपना मनोरंजन करके अपने को इस दुनिया में इतना व्यस्त कर लेता है की उसकी अंतरात्मा की आवाज सुनने का कभी अवसर ही नहीं मिलता और अगर कभी अवसर मिलता भी है तो उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता है क्योकि उसका सारा ध्यान इस संसार के आनंद लेने में लगा रहता है और फिर जैसे जैसे वह युवा अवस्था में पहुँचता है उसकी संसार की और खिचाव और भी अधिक बढ़ने लगती है जैसे नौकरी की चिंता,शादी की चिंता व् और भी अन्य अन्य जीवन से जुडी संमस्याऐं उसे उसे इस संसार से जोड़े रखती हैं और इस तरह से एक इंसान का पूरा जीवन बिना अपने अंतरात्माँ की आवाज को जाने अनजाने में नज़रअंदाज करते करते इसी तरह से बीत जाता है

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उद्धार, मोक्ष, मुक्ति का अर्थ होता है ? what is salvation?

उद्धार, मोक्ष, मुक्ति का अर्थ होता है ? what is salvation?

उद्धार, मोक्ष, मुक्ति का अर्थ है पाप के कारण मनुष्य का ईश्वर के साथ टूटा हुआ रिश्ता फिर से जुड़ना


उद्धार , मोक्ष,मुक्ति क्यों किसी इंसान के लिए क्यों जरुरी है ? why salvation is important for every humanbeing?

हम सभी जानते है की इस दुनिया में सभी इंसान जन्म से ही पापी है मनुष्य जन्म से ही पाप स्वभाव लेकर जन्म लेता है इस बात को सभी धर्म ग्रंथो से भी प्रमाणित होता है और इस बात को हम अपने जीवन में देख सकते है जैसे कोई  बच्चा जन्म लेता है तो उसे कोई पाप करना नहीं सिखाता फिर भी वो खुद ही अपने स्वाभव से अपने पाप को प्रकट करता है. उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा ये महसूस करता है की उसके माँ या पिता उससे ज्यादा उसके किसी भाई या बहन को ज्यादा प्यार करता है तो उसके मन में ईर्ष्या की भावना  पैदा होती है ये स्वभाव कहा से आया ? ये ही है मनुष्य का पाप स्वभाव जो इंसान जन्म से हे लेकर पैदा होता है मनुष्य के अंदर पाप का स्वभाव बाहर से नहीं आता बल्कि उसके भीतर ही छुपा होता है जो धीरे धीरे उसके कार्यों के द्वारा प्रकट होने लगता  है इस कारण हर मनुष्य दोषी है और क्योकि मनुष्य दोषी है इसलिए दंड का हक़दार भी है परमेश्वर जिसने इस पूरी कायनात को बनाया है उसमे कोई दोष नहीं है वो परम पवित्र है और अपने पास दोषी व्यक्ति को स्वीकार नहीं कर सकते है इसलिए आहार मनुष्य के लिए ये अति आवश्यक है की वो अपने पापो से मुक्ति पाकर सच्चे परमेश्वर से मेल मिलाप कर ले.जब किसी इंसान के पाप पूरी तरह से  मिट जाते है तब उसका परमेशर के साथ टुटा हुआ सम्बन्ध फिर से जुड़ जाता है और पाप के दंड से छूटकर परमेशर के साथ अनंत जीवन का वारिस बन जाता है 









जिस इंसान ने उद्धार नहीं पाया उसका क्या होगा?what will happen to the person who can not be saved?

जैसा की पहले बताया गया है की सारी  दुनिया को रचनेवाला परमेश्वर परम पवित्र है उसमे कोई पाप नहीं है इसलिए वो पापी व्यक्ति को अपने पास  परलोक अथवा  स्वर्ग में  स्वीकार नहीं कर सकते है अब प्रश्न ये उठता है की तो फिर जिस इंसान के पाप क्षमा नहीं हुए अथवा जो उद्धार पाने से वंचित रह गए है उनके साथ क्या होगा? परमेश्वर ने वैसे लोगों के लिए एक अलग जगह  ठहरायी है जिसे हम नर्क या दंड लोक के नाम से भली भांति जानते है जहाँ उद्धार से वंचित व्यक्तियों को अनंतकाल के लिए डाल दिया जाएगा जहाँ बहुत भयानक पीड़ा व असहनीय दुःख होगा अब आपके मन में ये प्रश्न उठ सकता है की क्या स्वर्ग और नर्क वास्तविक है? जी हाँ दोस्तों स्वर्ग नर्क वास्तविक है इसके बारे में आपको अगले पोस्ट में विस्तार से बताया जाएगा


उद्धार, मोक्ष, मुक्ति पाने के लिए क्या करे? what to do to get salvation?

अब आपने जान लिया की उद्धार ,मोक्ष मुक्ति क्या है और उद्धार पाना किसी इंसान के लिए क्यों जरुरी है लकिन अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है की उद्धार कैसे पाया जाए ? आइए इसे गहराई से जानते है आज इस दुनिया में जितने भी धर्म मजहब है सब का एक एक ही मकसद है उद्धार, मोक्ष , मुक्ति पाना हर धर्म हमें मोक्ष उद्धार पाने का तरीका बताते  है जैसे की त्याग तप कर्म दान पुण्य तीर्थयात्राएं इत्यादि इत्यादि अब सवाल ये है की क्या सभी धर्म हमें उद्धार मोक्ष मुक्ति दिला सकता है? जी नहीं दोस्तों ऐसा बिलकुल भी नहीं है धर्म मजहब से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है क्योकि हम सभी जानते है की इस दुनिया में हर इंसान पापी है और पापी इंसांन खुद के प्रयासों से मोक्ष उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता है उदाहरण के लिए अगर एक कानून का उल्लंघन करने वाला दोषी कानून की नजर में दोषी है इसलिए उसकी सजा भी कानून अपने अनुसार देगा न की दोषी अपने अनुसार खुद को को नुकसान पहुंचा कर जज साहब से कह सकता है की जज साहब में मानता हूँ की मैंने कानून का उल्लंघन किया है इसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ  आप मुझे इसके लिए दंड मत दीजिये मैं आपको कुछ पैसे देता हु या या में ये सहर छोड़ कर कही और चला जाउंगा या अपने शरीर को खुद ही कष्ट दे देता हूँ तो क्या कानून उसकी बात को मानेगा? नहीं बिलकुल भी ,कानून उसे उसकी गलती की सजा अपने अनुसार देगा ठीक उसी तरह एक पापी इंसान परमेश्वर के विरुद्ध पाप करता है इसलिए उसकी सजा भी परमेश्वर ही तय करेंगे मनुष्य कोई दूसरे उपाय से उस दंड से बच नहीं सकता जब तक की परमेश्वर खुद उसे माफ़ न कर दे











और हम सब जानते परमेश्वर न्यायी होने के साथ साथ दयालु भी है  परमेश्वर जानते है की कोई मनुष्य अपने अचे कर्मो के  बदौलत उसके पास नहीं पहुंच सकता है परमेश्वर को अपने न्यायी स्वभाव को बनाए रखने के लिए पाप का दंड देना जरुरी था और अपने प्रेमी और दयालु स्वभाव के कारण किसी को दंड देना नहीं चाहते इसलिए परमेश्वर ने मनुष्य पर दया करके एक उपाय निकला जिसके द्वारा सारे जगत के लोगों का पाप मिट सके। उसके लिए एक ऐसे निष्पाप निष्कलंक और पवित्र  मनुष्य की आवश्यकता थी जो सबके गुनाहों को, अपने ऊपर ले और सारा दंड उसके ऊपर लाद दिया लकिन इस दुनिया में तो हर कोई जन्म से ही पापी है तो  इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति इस योग्य नहीं है इसिलए परमेश्वर को स्वयं मनुष्य रूप धारण करके इस पृथ्वी पर आना पड़ा जो कँवारी कन्या के द्वारा जन्म जिसके बारे में भविष्वाणी परमेश्वर के चुने हुए नबियों द्वारा सैकड़ो वर्ष पहले इस तरह हुई थी  और सिर्फ उसी के द्वारा किसी इंसान का उद्धार संभव है क्योकि ये परमेश्वर के द्वारा समस्त मानवजाति के लिए एक वरदान है कोई भी इंसान सिर्फ जो परमेश्वर की योजना का दिल से समर्थन करता है और उसे अपनाता है वो अवश्य ही उद्धार पाएगा परन्तु जो उसका विरोध करे वो अपने पापों का बोझ स्वयं उठाएगा और उस पाप के दंड पाएगा क्योकि इंसान के धर्म कर्म परमेश्वर की नजर में व्यर्थ है











धर्म कर्म से मोक्ष नहीं मिलती है

आज इस संसार में जितने भी धर्म है सभी मोक्ष पाने का अपने अपने अलग अलग तरीके बताते है जैसे 
 कठोर तप व कड़ी साधना ,खूब दान पुण्य, तीर्थ यात्राएं  इत्यादि इत्यादि , परन्तु ये सभी तो मनुष्य की खुद की समझ और बुद्धि से मोक्ष पाने के तरीके है। और क्योकि यह मनुष्य के बनाए हुए तारिके है इसलिए इसमें कोई न कोई खामिया भी है आइये जानते ही इन तरीकों में क्या क्या खामियां  है।


अगर हम कठोर तप व कड़ी साधना से की बात करें तो सबके लिए उद्धार पाना असंभव हो जाएगा क्योकि क्योकि इस संसार में बहुत से लोग चाहे जन्म से या किसी दुर्घटना के कारण शारीरिक रूप से विकलांग पाए जाते है जो कड़ी साधना नहीं करने के लिए सक्षम नहीं है ऐसे बहुत सारे लोग उद्धार से वंचित रह जाएंगे और अगर सिर्फ शारीरिक तप के आधार पर किसी इंसान को मोक्ष मिले तो परमेश्वर पक्षपाती ठहरेंगे
अगर और दान पुण्य के आधार पर मोक्ष की प्राप्ति होती तो भी परमेश्वर पक्षपाती ठहरेंगे क्योकि इस दुनिया में बहुत सारे लोग इतने गरीब है की उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है ऐसे में सिर्फ धनवान व्यक्ति ही मोक्ष पा सकेगा और गरीब व्यक्ति के पास उद्धार पाने का कोई विकल्प नहीं होगा और तीर्थयात्रा द्वारा उद्धार पाने का कोई कारण ही नहीं है ये एक इंसान की खुद की सोच है और कुछ नहीं। अतः हमने जाना की मोक्ष कोई इंसान खुद से प्राप्त नहीं कर सकता उसके लिये एक मोक्षदाता की आवश्यकता है जो उसे मुफ्त में मोक्ष प्रदान करे और परमेश्वर ने इसी उद्देश्य से एक मोक्षदाता को संसार में भेजा जिसे हम यीशु मसीह के नाम से जानते है आइए इस बात को बाइबल में लिखी कुछ वचनो द्वारा देखते हैं


बाइबल में लिखा है "स्वर्ग के नीचे पृथ्वी पर मनुष्यों में यीशु मसीह के अलावा और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें। प्रेरितों के काम 4 :12

यीशु मसीह के जन्म के लगभग 700 वर्ष पहले येशु के बारे में नबियों द्वारा भविष्वाणी

यशायाह 9 :
6  क्योंकि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ , हमें एक पुत्र दिया गया है ; और प्रभुता उसके कंधे पर होगी , और उसका नाम अद्भुद युक्ति करने वाला ,पराक्रमी परमेश्वर , अनंतकाल का पिता , और शांति का राजकुमार रखा जाएगा
7 उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी , और उसकी शांति का अंत न होगा

और जब यीशु मसीह के जन्म से पहले यशु की माँ को स्वर्गदूत द्वारा भविष्वाणी

मत्ती 1 :21 
देखो वह गर्ववती होगी तू उसका नाम यीशु रखना ; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा
22  ऐसा इसलिए हुआ की जो वचन प्रभु ने भविष्यवक्ता से कहा था ; पूरा हो





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सच्चे परमेश्वर को कैसे पहचाने?

सच्चे परमेश्वर को कैसे पहचाने?



इस  दुनिया में प्रतिदिन हज़ारो लाखों  संख्या में बच्चे जन्म लेते है और प्रति दिन लगभग उतनी ही संख्या में लोगों की मौत भी होती है लकिन दुर्भाग्यवश हर इंसान अपने पीछे एक सवाल को नज़रअंदाज़ कर जाता है की सच्चा परमेश्वर कौन है इंसान को पेड़ पौधे जीव जन्तुओ नदी घाटी पर्वत पहाड़ों सूरज सितारों को बनाने वाला परमेशर कोण ही वो कैसा दिखाई देता है उसकी खोज कैसे करें? आज मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर को भूल चूका है और दुनिया के चकाचौंध में कही खो गया है



सच्चे परमेश्वेर को कैसे पहचाने? 

एक बच्चा जब जन्म लेकर इस संसार में आता है तब उसे कुछ भी पता नहीं होता क्योंकि उसकी बुद्धि की स्तर
बहुत कम होती है इसलिए बच्चा जैसे जैसे बड़ा होने लगता है उसकी बुद्धि का स्तर धीरे धीरे विकसित होने लगता है और उसके मन में बहुत सारे सवाल आने लगते है जैसे की इस संसार को किसने बनाया इंसान की मृत्यु क्यों होती है इंसान का इस  जीवन में आने का मुख्य  लक्ष्य क्या है इंसान की मौत होने का बाद क्या होता है ये सारे सवाल हर बच्चे के मन में कही न कही छुपा हुआ होता है लकिन दुनिया के कामो में व्यस्त होने के कारण तथा दुनिया का आनंद लेने के कारण ऐसे सवालो को नज़रअंदाज़ कर देता है और इन सारे सवालों का जवाब जानने की कोशिश भी करता है तो अपने आस पास ही जवाब ढूंढ रहा होता है ऐसे में वो अपने परिवार या समाज के बताए हुए जवाब से संतुष्ट होकर रह जाता है और उसके बाद अपने व्यक्तिगत जीवन में इतना व्यस्त हो जाता है की उसके मन में ऐसे सवाल उठना ही बंद हो जाता है सिर्फ अपने धर्म में बताए गए रीती रिवाजों परम्पराओं पर्व त्योहारों को मानकर सोच लेता है की शायद वो परमेश्वर को पहचान चूका है उसके बाद अगर उसके बच्चे उससे यही सवाल पूछे तो उसे वही जवाब देता है जो उसके परिवार वालो ने या समाज वालों ने बताया होता है इस तरह से वो पूरी जिंदगी धोखे में गुजार देता है और एक दिन उसकी मौत हो जाती है. अब सवाल ये उठता है की आखिर सच्चे परमेशर को कैसे पहचाने? इसका उत्तर कोई इंसान  सकता परमेश्वर को जानना है तो आप परमेश्वर से सीधे बात करके पूछ सकते हो परमेश्वर ने प्रत्येक  को बूुद्धि और विवेक दिए है ताकि उसी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करके आप उस तक पहुंच सके परमेश्वर को जानने के लिए आपको किसी की आवश्यकता नहीं है परमेश्वर ने सरे ब्रम्हाण्ड को रचा है उसके लिए कुछ  भी नामुनकिन नहीं है वो खुद आपको अपना परिचय दे सकते है बस आवश्यकता है आपको उसको अपने सम्पूर्ण बुद्धि  सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण  ह्रदय से ढूंढ़ने की 


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धर्म एक सामाजिक जकड़न

धर्म एक सामाजिक जकड़न 

जब एक बच्चा अपनी माँ के पेट से बाहर इस संसार में आता है तो उसे न तो किसी धर्म के बारे में कुछ पता होता है और न ही वो धर्म के बारे में कुछ जानने की कोशिश करता है जैसे जैसे वह बड़ा होता है उसकी बुद्धि और सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है और जैसे अपने आस पास के माहौल में अपने परिवार अपने समाज में जो कुछ देखता और सीखता उसके प्रति उसका लगाव बढ़ता जाता है  और कही न कही वह खुद को भावनात्मक रूप से खुद को अपने धर्म के रीती रिवाजों परपराओं आदि से खुद को जोड़ लेता है जिसका अहसास उसे खुद भी कभी महसूस नहीं होता इन सबके बीच उसे सांसारिक चिंताओं में सूबा हुआ रहता है और उसे अपने धर्म के बाहर की वास्तविकता को पहचानने की आवश्यकता महसूस नहीं होती और अगर कोई उसे उसके धर्म से अलग कुछ भी देखने या सुनने को मिले तो वह उसे स्वीकार नहीं कर पाता क्योकि इससे उसे अपने धार्मिक भावनाओ से अलग होने का खतरा महसूस होता है और इस तरह से वह अपने परिवार समाज के बनाए रीती रिवाजों परम्पराओ को मानकर अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता देता है जिस तरह से एक कुआँ का मेढक कुए को अपनी दुनिया समझकर उस कुए में अपनी सारी ज़िंदगी बिता देता है. 


धार्मिक अंधापन 

आज हर इंसान अपने धर्म को ऊँचा दिखाने या ऊँचा बताने की कोशिश करता है लकिन किसी को भी अपने धर्म में कोई बुराई नज़र नहीं आती है सबको अपना धर्म सर्वोच्च संपन्न लगता है.
इस बात को एक उदाहरण से समझ सकते है एक बार पांच अन्धो को एक हाथी को स्पर्श के द्वारा व्याख्या करने को कहा गया पांचो अन्धो ने हाथी को स्पर्श किया और अपनी अपनी राय दी पहले ने हाथी की पूछ को स्पर्श करके उसे रस्सी बताया दूसरे ने हाथी के पैर को स्पर्श करके उसे खम्भा बताया तीसरे ने हाथी के पेट को स्पर्श करके उसे दीवार बताया चौथे ने हाथी के सूँड को स्पर्श किया और उसे एक लकड़ी बताया और पांचवे ने हाथी के कान को स्पर्श करके उसे सूप बताया सबने अपनी अपनी राय अपने अपने सोच के मुताबिक दी और पांचो अंधे अपनी अपनी नज़रो में सही थे परन्तु एक ऐसा इंसान जो देख सकता है उसकी नज़र में पांचो अंधे गलत है क्योंकि हाथी न तो रस्सी है न खम्भा न दिवार न लकड़ी और न ही सूप, ठीक उसी तरह आज जितने भी धर्म इस दुनिया में मौजूद है सब अपने अपने धर्म को ऊँचा और सच्चा बताने में लगे हुए है लकिन सच्चा कोई भी नहीं है अगर सचाई को जानना है तो धार्मिक अंधापन को दूर करना होगा अपनी छोटी मानसिकता से ऊपर उठना होगा क्योकि एक धर्म का अँधा इंसान कभी भी सचाई को नहीं जान पाएगा

धार्मिक अंधापन की एक सामाजिक बुराई 

आज हर धर्म के लोग अपने अपने धर्म के रीती रिवाजों के प्रति बहुत  श्रद्धा और आस्था रखते है कई धार्मिक क्रिया करते है लकिन इंसान के इन बाहरी तौर से कििये क्रियाकलापों से मनुष्य को एक झूठी तस्सली के सिवा कुछ हासिल नहीं होता , इन धार्मिक क्रियाकलापों को करने वाला मनुष्य खुद को धार्मिक समझने लगता है लकिन भीतरी तौर पर वह धर्म से अनजान ही रहता है उदारहण के तौर पर आज हर इंसान किसी न किसी धर्म से जुड़ा है और हर कोई अपने अपने धर्म के अनुसार धार्मिक क्रियाकलापों को पूरी श्रद्धा के साथ करता है तो फिर क्या समाज में जितने भी लोग पाप करते है क्या वे धार्मिक क्रियाकलाप नहीं करते? ऐसा बिल्कुल नहीं है वास्तविकता तो ये है की धार्मिक क्रियाकलाप एक इंसान को बाहरी तौर पर एक अच्छा इंसान होने की झूठी सांत्वना देता है जिसके कारण इंसान अपने भीतरी वैयक्तित्व को सुधारने की जरुरत महसूस नहीं कर पाता  और पूरी जिंदगी धर्म के अंधेपन में बिता देता है. 






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धर्म की उत्पत्ति क्यों कब और कैसे हुई

धर्म की उत्पत्ति क्यों कब और कैसे हुई

आज हर इनसांन धर्म की बात करते है हर कोई अपने अपने धर्म को दूसरे से अच्छा  बताने में गर्व महसूस करता है लकिन शायद ही किसी को इस धर्म की कुछ मुख्य बांते पता हो? जैसे  की धर्म की उत्त्पति कब कैसे और क्यों हुई? दोस्तों आज मै  आपको इसी विषय पर कुछ  बताने जा रहा हूँ 




धर्म की उतपति क्यो हुई?

जब सारी सृष्टि का निर्माण हुआ तब मनुष्य पूरी पेड़ पौधे जीव जंतु पशु पक्षी के साथ साथ धीरे धीरे विकसित होने लगा परंतु सारी सृष्टि में मनुष्य एक मात्र ऐसा प्राणी है  जो सब से अलग और श्रेष्ठ था क्योकि  सिर्फ  मनुष्य के पास सोचने समझने के लये विवेक और बुद्धि का वरदान प्राप्त है और अपने इसी विवेक और बुद्धि का इस्तेमाल करके ही मनुष्य सही और गलत में अंतर को जान सकता है और जब कोई इंसान कुछ गलत करता है तो उसकी अंतरात्मा उसे कही न कही दोषी ठहराती है और उसे उस गलत कार्य के लिए दंड का डर का भय कही न कही उसके मन को प्रभावित करती है और जब मनुष्य को इस बात का ज्ञात हुआ तो उस दंड से 
बचने के लिए अथवा मोक्ष प्राप्ति के लिए अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करके कई उपाय किये और कई क्रियाकलापों को जन्म दिया और आगे चलकर धर्म का रूप ले लिया 






धर्म की उत्पत्ति कब हुई?

इस प्रश्न का उत्तर शायद ही किसी को पता हो आज तक इस बात का सही अनुमान नहीं लग पाया है 
लकिन धर्मग्रंथो के अनुसार सब के अलग अलग विचार है धर्म की उत्पत्ति तब हुई जब जब इंसान की अंतरात्मा ने उसे अपने सृष्टिकर्ता की जरुरत महसूस हुई धर्म की उत्पत्ति के समय काल पर कोई धर्म एकमत 
नहीं है 













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धर्म की परिभाषा क्या है?

धर्म की परिभाषा क्या है?

आज हमारे बीच धर्म एक बहुत संवेदनशील विषय है 
पूरे देश में धर्म के नाम पर झगड़े बैर आक्रोश अशांति फैली है लेकिन ताजुब की बात यह है कि धर्म के नाम पर अशांति फैलाने वालों को धर्म का अर्थ ही नहीं पता



धर्म का अर्थ से अनजान 

आज किसी भी इंसान से पूछा जाए कि आपका किस धर्म को मानने वाले हैं तो अक्सर लोगों को जवाब होता है कोई कहेगा कि मैं हिंदू हूँ कोई कहेगा मुस्लिम हूँ कोई अपने को सिक्ख बताएगा, और कोई ईसाई, बौद्ध,जैन, पारसी इत्यादि इत्यादि ।



धर्म और मजहब में अन्तर 

असल में धर्म का वास्तविक अर्थ तो कुछ और ही है ये सभी तो इंसान के खुद के प्रयासों से बनाए गए मजहब हैं और इन मजहबों से मानव को मात्र एक समुदाय के रूप में प्रस्तुत करने के अलावा और कुछ नहीं लाभ नहीं हो सकता है



मजहब के नुकसान 

आज हर इंसान अपने मजहब को अपना धर्म समझकर एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं कोई धर्म के नाम पर आतंक फैला रहा है कोई धर्म के नाम पर दंगा फसाद कर रहा है कुछ लोग धर्म के नाम पर लोगों से धन लूट रहे हैं और कोई धर्म के नाम पर अशांति फैला रहा है ।अगर आप इन लोगों में से किसी से भी धर्म की परिभाषा पूछोगे तो शायद ही कोई धर्म की सही परिभाषा बता पाए। अब सवाल यह है कि अगर मजहब से इंसान को इतनी समस्याएं उत्पन्न होती हैं तो फिर इन सभी मजहबों की जरूरत क्यों है?



धर्म की वास्तविक परिभाषा 

मनुष्य का अपने संपूर्ण मन संपूर्ण हृदय और संपूर्ण बुद्धि से अपने सृष्टिकर्ता को पहचानना और उसका अनुसरण करना ही सच्चा और वास्तविक धर्म है।
जब कोई व्यक्ति अपने सृजनहार का अनुसरण अपनी सारे मन प्राण और बुद्धि से करता है तो वह अपने भीतर छुपे मानवीय गुणों को अपने आप प्रकट करने लग जातें हैं। 



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