हम सभी जानते है की इस दुनिया में सभी इंसान जन्म से ही पापी है मनुष्य जन्म से ही पाप स्वभाव लेकर जन्म लेता है इस बात को सभी धर्म ग्रंथो से भी प्रमाणित होता है और इस बात को हम अपने जीवन में देख सकते है जैसे कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे कोई पाप करना नहीं सिखाता फिर भी वो खुद ही अपने स्वाभव से अपने पाप को प्रकट करता है. उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा ये महसूस करता है की उसके माँ या पिता उससे ज्यादा उसके किसी भाई या बहन को ज्यादा प्यार करता है तो उसके मन में ईर्ष्या की भावना पैदा होती है ये स्वभाव कहा से आया ? ये ही है मनुष्य का पाप स्वभाव जो इंसान जन्म से हे लेकर पैदा होता है मनुष्य के अंदर पाप का स्वभाव बाहर से नहीं आता बल्कि उसके भीतर ही छुपा होता है जो धीरे धीरे उसके कार्यों के द्वारा प्रकट होने लगता है इस कारण हर मनुष्य दोषी है और क्योकि मनुष्य दोषी है इसलिए दंड का हक़दार भी है परमेश्वर जिसने इस पूरी कायनात को बनाया है उसमे कोई दोष नहीं है वो परम पवित्र है और अपने पास दोषी व्यक्ति को स्वीकार नहीं कर सकते है इसलिए आहार मनुष्य के लिए ये अति आवश्यक है की वो अपने पापो से मुक्ति पाकर सच्चे परमेश्वर से मेल मिलाप कर ले.जब किसी इंसान के पाप पूरी तरह से मिट जाते है तब उसका परमेशर के साथ टुटा हुआ सम्बन्ध फिर से जुड़ जाता है और पाप के दंड से छूटकर परमेशर के साथ अनंत जीवन का वारिस बन जाता है
अब आपने जान लिया की उद्धार ,मोक्ष मुक्ति क्या है और उद्धार पाना किसी इंसान के लिए क्यों जरुरी है लकिन अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है की उद्धार कैसे पाया जाए ? आइए इसे गहराई से जानते है आज इस दुनिया में जितने भी धर्म मजहब है सब का एक एक ही मकसद है उद्धार, मोक्ष , मुक्ति पाना हर धर्म हमें मोक्ष उद्धार पाने का तरीका बताते है जैसे की त्याग तप कर्म दान पुण्य तीर्थयात्राएं इत्यादि इत्यादि अब सवाल ये है की क्या सभी धर्म हमें उद्धार मोक्ष मुक्ति दिला सकता है? जी नहीं दोस्तों ऐसा बिलकुल भी नहीं है धर्म मजहब से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है क्योकि हम सभी जानते है की इस दुनिया में हर इंसान पापी है और पापी इंसांन खुद के प्रयासों से मोक्ष उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता है उदाहरण के लिए अगर एक कानून का उल्लंघन करने वाला दोषी कानून की नजर में दोषी है इसलिए उसकी सजा भी कानून अपने अनुसार देगा न की दोषी अपने अनुसार खुद को को नुकसान पहुंचा कर जज साहब से कह सकता है की जज साहब में मानता हूँ की मैंने कानून का उल्लंघन किया है इसके लिए में बहुत शर्मिंदा हूँ आप मुझे इसके लिए दंड मत दीजिये मैं आपको कुछ पैसे देता हु या या में ये सहर छोड़ कर कही और चला जाउंगा या अपने शरीर को खुद ही कष्ट दे देता हूँ तो क्या कानून उसकी बात को मानेगा? नहीं बिलकुल भी ,कानून उसे उसकी गलती की सजा अपने अनुसार देगा ठीक उसी तरह एक पापी इंसान परमेश्वर के विरुद्ध पाप करता है इसलिए उसकी सजा भी परमेश्वर ही तय करेंगे मनुष्य कोई दूसरे उपाय से उस दंड से बच नहीं सकता जब तक की परमेश्वर खुद उसे माफ़ न कर दे
और हम सब जानते परमेश्वर न्यायी होने के साथ साथ दयालु भी है परमेश्वर जानते है की कोई मनुष्य अपने अचे कर्मो के बदौलत उसके पास नहीं पहुंच सकता है परमेश्वर को अपने न्यायी स्वभाव को बनाए रखने के लिए पाप का दंड देना जरुरी था और अपने प्रेमी और दयालु स्वभाव के कारण किसी को दंड देना नहीं चाहते इसलिए परमेश्वर ने मनुष्य पर दया करके एक उपाय निकला जिसके द्वारा सारे जगत के लोगों का पाप मिट सके। उसके लिए एक ऐसे निष्पाप निष्कलंक और पवित्र मनुष्य की आवश्यकता थी जो सबके गुनाहों को, अपने ऊपर ले और सारा दंड उसके ऊपर लाद दिया लकिन इस दुनिया में तो हर कोई जन्म से ही पापी है तो इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति इस योग्य नहीं है इसिलए परमेश्वर को स्वयं मनुष्य रूप धारण करके इस पृथ्वी पर आना पड़ा जो कँवारी कन्या के द्वारा जन्म जिसके बारे में भविष्वाणी परमेश्वर के चुने हुए नबियों द्वारा सैकड़ो वर्ष पहले इस तरह हुई थी और सिर्फ उसी के द्वारा किसी इंसान का उद्धार संभव है क्योकि ये परमेश्वर के द्वारा समस्त मानवजाति के लिए एक वरदान है कोई भी इंसान सिर्फ जो परमेश्वर की योजना का दिल से समर्थन करता है और उसे अपनाता है वो अवश्य ही उद्धार पाएगा परन्तु जो उसका विरोध करे वो अपने पापों का बोझ स्वयं उठाएगा और उस पाप के दंड पाएगा क्योकि इंसान के धर्म कर्म परमेश्वर की नजर में व्यर्थ है
धर्म कर्म से मोक्ष नहीं मिलती है
आज इस संसार में जितने भी धर्म है सभी मोक्ष पाने का अपने अपने अलग अलग तरीके बताते है जैसे
कठोर तप व कड़ी साधना ,खूब दान पुण्य, तीर्थ यात्राएं इत्यादि इत्यादि , परन्तु ये सभी तो मनुष्य की खुद की समझ और बुद्धि से मोक्ष पाने के तरीके है। और क्योकि यह मनुष्य के बनाए हुए तारिके है इसलिए इसमें कोई न कोई खामिया भी है आइये जानते ही इन तरीकों में क्या क्या खामियां है।
अगर हम कठोर तप व कड़ी साधना से की बात करें तो सबके लिए उद्धार पाना असंभव हो जाएगा क्योकि क्योकि इस संसार में बहुत से लोग चाहे जन्म से या किसी दुर्घटना के कारण शारीरिक रूप से विकलांग पाए जाते है जो कड़ी साधना नहीं करने के लिए सक्षम नहीं है ऐसे बहुत सारे लोग उद्धार से वंचित रह जाएंगे और अगर सिर्फ शारीरिक तप के आधार पर किसी इंसान को मोक्ष मिले तो परमेश्वर पक्षपाती ठहरेंगे
अगर और दान पुण्य के आधार पर मोक्ष की प्राप्ति होती तो भी परमेश्वर पक्षपाती ठहरेंगे क्योकि इस दुनिया में बहुत सारे लोग इतने गरीब है की उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है ऐसे में सिर्फ धनवान व्यक्ति ही मोक्ष पा सकेगा और गरीब व्यक्ति के पास उद्धार पाने का कोई विकल्प नहीं होगा और तीर्थयात्रा द्वारा उद्धार पाने का कोई कारण ही नहीं है ये एक इंसान की खुद की सोच है और कुछ नहीं। अतः हमने जाना की मोक्ष कोई इंसान खुद से प्राप्त नहीं कर सकता उसके लिये एक मोक्षदाता की आवश्यकता है जो उसे मुफ्त में मोक्ष प्रदान करे और परमेश्वर ने इसी उद्देश्य से एक मोक्षदाता को संसार में भेजा जिसे हम यीशु मसीह के नाम से जानते है आइए इस बात को बाइबल में लिखी कुछ वचनो द्वारा देखते हैं
बाइबल में लिखा है "
स्वर्ग के नीचे पृथ्वी पर मनुष्यों में यीशु मसीह के अलावा और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें। प्रेरितों के काम 4 :12
यीशु मसीह के जन्म के लगभग 700 वर्ष पहले येशु के बारे में नबियों द्वारा भविष्वाणी
यशायाह 9 :
6 क्योंकि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ , हमें एक पुत्र दिया गया है ; और प्रभुता उसके कंधे पर होगी , और उसका नाम अद्भुद युक्ति करने वाला ,पराक्रमी परमेश्वर , अनंतकाल का पिता , और शांति का राजकुमार रखा जाएगा
7 उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी , और उसकी शांति का अंत न होगा
और जब यीशु मसीह के जन्म से पहले यशु की माँ को स्वर्गदूत द्वारा भविष्वाणी
मत्ती 1 :21
देखो वह गर्ववती होगी तू उसका नाम यीशु रखना ; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा
22 ऐसा इसलिए हुआ की जो वचन प्रभु ने भविष्यवक्ता से कहा था ; पूरा हो